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Aisa Bacteria jo Carbon dioxide khakar shakkar banayega

ऐसा बैक्टीरिया जो कार्बन डाइऑक्साइड खाकर शक्कर बनाएगा 

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Bacteria jo Carbon dioxide khakar shakkar banayega
E-coli Bacteria


पिछले कुछ समय से भारत समेत दुनिया के बहुत सारे देश गहरे वायु प्रदूषण की समस्या का सामना कर रहे हैं। जिसकी वजह से सांस की बीमारियों में भी तेजी से इजाफा हुआ है। 

लेकिन इजरायल ने एक रिसर्च के जरिए ऐसे बैक्टीरिया को विकसित किया है, जो वातावरण से कार्बन को अवशोषित करके अपने शरीर को बनाता है। 

इससे फ्यूचर में ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकेगी।शोधकर्ता ऐसा बैक्टीरिया विकसित करते हैं जो कार्बन डाइऑक्साइड (Eat) को खाता है। 

ये बैक्टीरिया भविष्य में ग्रीनहाउस गैस संचय को कम करने के लिए जरुरी तकनीकों को विकसित करने में मदद कर सकता है।

वैज्ञानिकों ने 10 वर्ष की रिसर्च के बाद एक ऐसा बैक्टीरिया बनाया है जो कार्बन डाइऑक्साइड को खाएगा और शक्कर को बनाएगा। और यह वातावरण को भी शुद्ध करेगा। 

यह खोज वेइजमैन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस द्वारा की गई है। तेल अवीव के सेंट्रल इजरायल के रेहोवोट में स्थित इस रिसर्च सेंटर को 1934 में डैनियल सीफ इंस्टीट्यूट के रूप में स्थापित किया गया था। 

इस संस्थान को प्राकृतिक और सटीक विज्ञान में खोज करने के लिए दुनिया के नंबर वन रिसर्च सेंटर्स में माना जाता है।




जर्नल सेल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, ई-कॉली बैक्टीरिया को लगभग एक दशक की लंबी प्रक्रिया के बाद चीनी से पूरी तरह हटाया गया। दरअसल, ये बैक्टीरिया शुगर कंज्यूम करने के बाद कॉर्बन डाइऑक्साइड को प्रोड्यूस करते थे, लेकिन इनकी री-प्रोग्रामिंग करने के बाद ये कॉर्बन डाइऑक्साइड कंज्यूम करके शुगर का निर्माण करने लगे। 

इसके लिए ये बैक्टीरिया अपनी बॉडी का निर्माण पर्यावरण में मौजूद कॉर्बन डॉइऑक्साइड से करेंगे और फिर शुगर प्रड्यूस करेंगे।

बैक्टीरिया की री-प्रोग्रामिंग सफल रही-

समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों ने अपने शोध पर दावा किया है कि ये बैक्टीरिया हवा में मौजूद कार्बन से अपने शरीर के पूरे बायोमास का निर्माण करते हैं। 

इससे उन्हें उम्मीद है कि आने वाले समय में इन बैक्टीरियाओं की मदद से वातावरण में ग्रीनहाउस गैस के संचय को कम करने के लिए तकनीक विकसित करने में मदद मिलेगी, जिससे ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते खतरे को कम किया जा सकेगा।

इस शोध को पूरा करने के लिए वैज्ञानिकों ने उन जीन्स को मैप किया जो इस प्रक्रिया के लिए जरूरी हैं और उनमें से कुछ को अपनी प्रयोगशाला में बैक्टीरिया के जीनोम में शामिल कर लिया। अथक परिश्रम के बाद शोधकर्ता इन बैक्टीरिया की री-प्रोग्रामिंग में सफल रहे।

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