ads

KABHI ARSH PAR KABHI FARSH PAR KABHI UNKE DAR

कभी अर्श पर कभी फ़र्श पर कभी उनके दर कभी दर बदर 


Estimated reading time: 2 minutes, 48 seconds

https://humariduniyakijaankari.blogspot.com/
parween shakir

दोस्तों आपने वो नज़्म तो जरुर सुनी होगी कभी अर्श पर कभी फर्श पर, आज मैं आपकी खिदमत में इसी नज़्म को पेश कर रहा हूँ जो कि मुझे बहुत पंसंद है उम्मीद है आपको भी पसंद आये| ये नज़्म जिस शायरा ने लिखी है उनका उर्दू अदब में अपना एक अलग ही मक़ाम है| इनकी शख्सियत किसी तारुफ़ का मोहताज नहीं है, उनके तारुफ़ के लिए उनका नाम ही काफ़ी है और वो नाम है- परवीन शाकिर, परवीन शाकिर पकिस्तान की नयी उर्दू शायरी में एक अहम् मुकाम रखती है |

आपका जन्म 24 नवम्बर, 1952 को शाकिर हुसैन के घर कराची सिंध, पकिस्तान में हुआ | आपकी उस्ताद मोहतरमा इरफान अजीज ने आपको लिखने की सलाह दी थी आप पहले भी पढना पसंद करती थी |

आपने एक Doctor से शादी की जिनका नाम नसीर अली था जिनसे आपको एक पुत्र भी है जिसका नाम सय्यद मुराद अली है | पर यह शादी ज्यादा दिनों तक नहीं रह पाई और यह तलाक के रूप में समाप्त हुई | परवीन शाकिर का प्रेम अपने अद्वितीय अंदाज में नर्म सुखन बनकर फूटे है और अपनी खुशबु से उसने उर्दू शायरी कि दुनिया को सराबोर कर दिया है |

आपकी शायरी का केन्द्रीय विषय 'स्त्री' रहा है | प्रेम में टूटी हुई बिखरी हुई खुद्दार स्त्री | आपकी शायरी में प्रेम का सूफियाना रूप नहीं मिलता वह अलौकिक कुछ नहीं है जो भी इसी दुनिया का है | आपके मुख्य शायरी के संग्रह है खुशबु (1976), सदबर्ग (1980), खुद कलामी (1990), इनकार (1990), माह-ए-तमाम (1994)

इस शायरा कि मृत्यु 26 दिसम्बर, 1994 को इस्लामाबाद पकिस्तान में अपने कार्य पर जाते वक्त कार दुर्घटना में हुई |


कभी अर्श पर कभी फ़र्श पर कभी उनके दर


कभी रुक गए कभी चल दिए! 
कभी चलते-चलते, भटक गए,
यूँ ही उम्र सारी गुजर दी
यूँ ही ज़िन्दगी के सितम सहे...

कभी नींद में कभी होश में!
तू जहाँ मिला तुझे देख कर
न नज़र मिली न जुबां हिली,
यूँ ही सर झुका के गुजर गए...

कभी ज़ुल्फ़ पर, कभी चश्म पर,
कभी तेरे हसीन वजूद पर
जो पसंद थे मेरे किताब में
वो शेर सारे बिखर गए!

मुझे याद है कभी एक थे
मगर आज हम है जुदा-जुदा
वो जुदा हुए तो संवर गए
हम जुदा हुए तो बिखर गए!

कभी अर्श पर  कभी फ़र्श पर 
कभी उनके दर कभी दर बदर
ग़म-ए-आशिकी तेरा शुक्रिया
हम कहाँ-कहाँ से गुजर गए

कभी अर्श पर  कभी फ़र्श पर 
कभी उनके दर कभी दर बदर
ग़म-ए-आशिकी तेरा शुक्रिया
हम कहाँ-कहाँ से गुजर गए



परवीन शाकिर 

इसे भी पढ़ें :- कोई आरजू नहीं  है कोई मुद्दआ नहीं है


KABHI ARSH PAR KABHI FARSH PAR KABHI UNKE DAR


Kabhi Ruk Gaye Kabhi Chal Diye !
Kabhi Chalte Chalte Bhatak Gaye,

Yunhi Umar Saari Guzaar Di
Yunhi Zinndagi Ke Sitam Sahe...

Kabhi Neend Mein Kabhi Hosh Mein!
Tu Jahan Mila Tujhe Dekh Kar

Na Nazar Mili Na Zubaan Hili,
Yunhi Sar Jhuka Ke Guzar Gaye...


Kabhi Zulf Par, Kabhi Chashm Par,
Kabhi Tere Hasin Wajood Par

Jo Pasand The Meri Kitab Mein
Wo Sher Saare Bikhar Gaye!

Mujhe Yaad Hai Kabhi Ek The
Magar Aaj Hum Hai Juda Juda

Wo Juda Hue To Sanwar Gaye
Hum Juda Hue To Bikhar Gaye!


Kabhi Arsh Par Kabhi Farsh Par,
Kabhi Unke Dar Kabhi Dar-Badar

Gham - e - Ashiqui Tera Shukriya
Hum Kahan Kahan Se Guzar Gaye

Kabhi Arsh Par Kabhi Farsh Par,
Kabhi Unke Dar Kabhi Dar-Badar

Gham - e - Ashiqui Tera Shukriya
Hum Kahan Kahan Se Guzar Gaye




praween shakir



एक टिप्पणी भेजें

3 टिप्पणियाँ

please do not enter any spam link in the comment box.