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kab tak bojh sambhala jaye tu bhi rana ka vansaj hai fenk jahan tak bhala jaye kavi wahid ali wahid ki kavita

कब तक बोझ संभाला जाए, द्वंद्व कहां तक पाला जाए






लखनऊ के मशहूर कवि वाहिद अली वाहिद (59 वर्ष) का मंगलवार 20 अप्रैल को निधन हो गया । उन्हें तीन दिन से उन्हें बुखार था। इलाज के लिए उन्हें लोहिया अस्पताल ले जाया गया लेकिन न तो उन्हें स्ट्रेचर मिला न ही भर्ती किया गया । आखिरकार इलाज के अभाव में वाहिद ने इस फानी दुनिया को अलविदा कह दिया।

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kavi wahid ali wahid


कवि वाहिद अली वाहिद लखनऊ के निवासी थें । वे मूल रूप से कुशीनगर के रहने वाले थे, वे आवास विकास लखनऊ में कार्यरत थे । उनकी दर्जनभर से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया था । 

आज हम आपके बीच उन्हीं की प्रसिद्द कविता शेयर कर रहे हैं |



कब तक बोझ संभाला जाए

द्वंद्व कहां तक पाला जाए


दूध छीन बच्चों के मुख से

क्यों नागों को पाला जाए


दोनों ओर लिखा हो भारत

सिक्का वही उछाला जाए


तू भी है राणा का वंशज

फेंक जहां तक भाला जाए


इस बिगड़ैल पड़ोसी को तो

फिर शीशे में ढाला जाए


तेरे मेरे दिल पर ताला

राम करें ये ताला जाए


वाहिद के घर दीप जले तो

मंदिर तलक उजाला जाए


कब तक बोझ संभाला जाए

युद्ध कहां तक टाला जाए


तू भी राणा का वंशज है 

फेंक जहां तक भाला जाए

इसे भी पढ़ें- मैं इश्क लिखूं तुझे हो जाये 




Kab tak bojh sambhala jaye

Dwand kahan tak pala jaye



Doodh chhin bachchon ke mukh se

Kyon naagon ko pala jaye



Dono aur likha ho bharat

Sikka wahi uchhala jaye


Tu bhi rana ka vansaj hai

Fenk jahan tak bhala jaye



Is bigdel padosi ko to

Fir sheeshe me dhala jaye



Tere mere dil par tala

Ram kare ye tala jaye



Wahid ke ghar deep jale to

Mandir tak ujaala jaye



Kab tak bojh sambhala jaye

Yuddh kahan tak tala jaye



Tu bhi rana ka vansaj hai 

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