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मजदूर दिवस

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस



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Labour Day

बिना मजदूर के विकास की काल्पना नहीं की जा सकती आज हम अपने आस पास जो कुछ भी निर्माण देख रहे है उन सब निर्माण के पीछे सैकड़ों मजदूरों का श्रम छुपा हुआ होता है जो जाहिरी तौर पर तो हमें नजर नहीं आता है |लेकिन सच्चाई ये है कि बिना मजदूर के मेहनत के हमारी दुनिया इतनी खुबसूरत कभी नहीं हो सकती थी हम इतना विकास नहीं कर सकते थे | मजदूर वो है जो अपना श्रम बेच कर पूंजीपतियों को जीवन के हर एश्वर्य और वैभव को प्राप्त करने का सामर्थ प्रदान करता है | मजदूर नींव कि ईट कि मानिंद अदृश्य रहता है और पूंजीपति गगनचुम्बी इमारतों के शिखर पर लगे प्रकाश पुंज कि तरह चमकता रहता है| हमारे समाज में मजदूरों को आज भी वो सम्मान नहीं मिल पाया है जिस के वो हक़दार हैं| ये हम सब जानते हैं कि मजदूर हमारे समाज का वह हिस्सा है जिसपर समस्त आर्थिक उन्नति टिकी हुई हैl वर्तमान समय के मशीनी युग में भी उनकी महत्ता कम नहीं हुई है | उदाहरण के लिए, उद्‌योग, व्यापार, कृषि, भवन निर्माण, पुल एवं सड़कों का निर्माण आदि समस्त क्रियाकलापों में मजदूरों के श्रम का योगदान महत्त्वपूर्ण होता है | मजदूर अपना श्रम बेचकर न्यूनतम मजदूरी प्राप्त करता है। इसीलिए अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ को बढ़ावा देने के लिये मजदूर दिवस को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता हैl पारंपरिक तौर पर इसको यूरोप में गर्मी के अवकाश के रूप में घोषित किया गया था, इसीलिए पूरे विश्व में 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस” मनाया जाता है |


विश्व में मजदूर दिवस की उत्पत्ति



1 मई 1886 में अमेरिका के सभी मजदूर संघ साथ मिलकर ये निश्चय करते है कि वे 8 घंटो से ज्यादा काम नहीं करेंगें, जिसके लिए वे हड़ताल कर लेते है | इस दौरान श्रमिक वर्ग से 10-16 घंटे काम करवाया जाता था, साथ ही उनकी सुरक्षा का भी ध्यान नहीं रखा जाता था | उस समय काम के दौरान मजदूर को कई चोटें भी आती थी, कई लोगों की तो मौत हो जाया करती थी. काम के दौरान बच्चे, महिलाएं व् पुरुष की मौत का अनुपात बढ़ता ही जा रहा था, जिस वजह से ये जरुरी हो गया था, कि सभी लोग अपने अधिकारों के हनन को रोकने के लिए सामने आयें और एक आवाज में विरोध प्रदर्शन करें | इस हड़ताल के दौरान 4 मई को शिकागो के हेमार्केट में अचानक किसी आदमी के द्वारा बम ब्लास्ट कर दिया जाता है, जिसके बाद वहां मौजूद पुलिस अंधाधुंध गोली चलाने लगती है | जिससे बहुत से मजदूर व् आम आदमी की मौत हो जाती है | इसके साथ ही 100 से ज्यादा लोग घायल हो जाते है | इस विरोध का अमेरिका में तुरंत परिणाम नहीं मिला, लेकिन कर्मचारियों व् समाजसेवियों की मदद के फलस्वरूप कुछ समय बाद भारत व अन्य देशों में 8 घंटे वाली काम की पद्धति को अपनाया जाने लगा | तब से श्रमिक दिवस को पुरे विश्व में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाने लगा, इस दिन मजदूर वर्ग तरह तरह की रेलियां निकालते व् प्रदर्शन करते है |


भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत



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भारत में मजदूर दिवस कामकाजी लोगों के सम्‍मान में मनाया जाता है. भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्‍दुस्‍तान ने 1 मई 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की थी | यह वह समय भी था जब लाल झंडा (इसकी नींव के बाद से इस्तेमाल किया जाने वाला दिन का प्रतीक) भारत में पहली बार इस्तेमाल किया गया था। हालांकि उस समय इसे मद्रास दिवस के रूप में मनाया जाता था |


मौजूदा दौर में मजदूरों के हालात


महात्मा गांधी कहते थे कि किसी भी देश का विकास उस देश के मेहनतकश मजदूरों और किसानों पर निर्भर करता है। अब देश का विकास तो धड़ल्ले से हो रहा है लेकिन देश के मजदूर आज भी बदहाली में जीवन बसर करने को मजबूर हैं। कहने को तो मजदूरों के संघर्ष आज भी होते हैं लेकिन उनमें वो धार नज़र नहीं आती। आज फिर पूंजीपति वर्ग मेहनतकश के शोषण से मोटा मुनाफा कमाने में जुटा है। नये-नये कानून पारित कर मजदूरों को संगठित होने पर पांबदियां लगाई जाने लगी हैं। आंदोलनों को तोड़ने के लिये साम दाम दंड भेद जितने भी हथियार अपनाये जाने चाहियें अपनाये जा रहे हैं। मजदूर भी खेमों में बंटा है जिस कारण उसकी ताकत कमजोर हुई है। जहां मजदूर संगठित हैं वहां फिर भी वे अपने हकों के लिये आवाज़ उठा लेते हैं लेकिन असंगठित क्षेत्र के मजदूर तो शोषण के लिये अभिशप्त हैं।

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