मैं मुफ़लिस हूँ मुझे दुनिया का दुर्बल लिख दिया जाए बेकल उत्साही
bekal utsahi |
मुहम्मद शफी अली खान (1 जून 1924 - 3 दिसंबर 2016) ये वो नाम है जिसे दुनिया बेकल उत्साही के रूप में जानती हैं, बेकल एक भारतीय कवि, लेखक और राजनीतिज्ञ थे | वे इंदिरा गांधी के करीबी और उच्च सदन राज्यसभा में सांसद थे। उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले, जिनमें पद्म श्री और यश भारती शामिल हैं।
बेकल उत्साही का जन्म 1 जून 1924 को हुआ था । वह राज्यसभा के पूर्व सदस्य थे। 1976 में उन्हें साहित्य में पद्मश्री पुरस्कार मिला। 1945 में देवा शरीफ के हजरत वारिस अली शाह की मजार की यात्रा के दौरान, शाह हाफिज प्यारे मियाँ ने कहा, "बेदम गया बेकल आया"। उस घटना के बाद मोहम्मद शफी खान ने अपना नाम "बेकल वारसी" के रूप में बदल लिया।
1952 में जवाहरलाल नेहरू की अवधि के दौरान एक दिलचस्प घटना घटी, जिसके परिणामस्वरूप उत्साही का उद्भव हुआ। उस समय गोंडा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का एक चुनावी कार्यक्रम था। बेकल वारसी ने नेहरू का उनकी कविता "किसान भारत का" के साथ स्वागत किया। नेहरू बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने कहा, "ये हमरा उस्ताही शायर है"। अंत में उन्हें साहित्य जगत में बेकल उत्साही के नाम से जाना जाता है ।
मैं मुफ़लिस हूँ मुझे दुनिया का दुर्बल लिख दिया जाए
मैं मुफ़लिस हूँ मुझे दुनिया का दुर्बल लिख दिया जाए ।।
मेरी सदियों में कोई सुख भरा पल लिख दिया जाए ।।
बड़ी कृपा है गंगा जी की मुझ पर, मेरे हिस्से में,
नमक, माचिस, चना, इक मुट्ठी चावल लिख दिया जाए ।।
मेरे ही खुरदरे पैरों से घायल होते हैं पौधे,
मुनासिब हो तो इक कागज़ की चप्पल लिख दिया जाए ।।
मैं सब कुछ बेचकर इक माँग भरवा दूँ मगर पहले,
कफ़न मेरा, मेरी बेटी का आँचल लिख दिया जाए ।।
मेरी दुनिया मेरे ही गांव के मुखिया ने लूटी है
कहाँ जाऊँ, मेरा ठिकाना चंबल लिख दिया जाए।।
मेरी खेती को सूरज काट ले जाता है सदियों से
जो उसको बाँध ले इक ऐसा बादल लिख दिया जाए।।
मेरी बस्ती को शायद खूबसूरत शहर बनना है
मिरी मालिक मिरी बस्ती को जंगल लिख दिया जाए
ठिठुरती छाँव ताप्ती धूप मेरे अंग के साथी
मैं जी लूंगा मुझे मांगे का कम्बल लिख दिया जाए ।।
मेरे बागों के फल के रस से मैखाने लहकते हैं
मैं प्यासा हूँ मुझे जहरीला बोतल लिख दिया जाए।।
1 टिप्पणियाँ
Wow..! Thanks
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