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INDIAN NAVIGATION SYSTEM



INDIAN NAVIGATION SYSTEM (NAVIC)

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https://humariduniyakijaankari.blogspot.com/
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दोस्तों हमारा देश भारत क्षेत्रफल कि दृष्टी से दुनिया का सातवाँ बड़ा देश है, इसके वृहद् क्षेत्र ,जलवायु विभिन्नता, कई तरह की  स्थालाकृतियाँ और भोगौलिक बनावट, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं भाषाई विविधतता की दृष्टी से इसे उपमहाद्वीप की संज्ञा दी जाती है| इसके इतने विशाल स्वरुप  का अध्ययन,सुरक्षा,मौसम, जलवायु,सामरिक हलचल, संचार, परिवहन इत्यादि आवश्यकताओं की दृष्टि से इसका अपना जीपीएस या यूँ कहें कि अपना कोई नेविगेसन सिस्टम नहीं होने के कारण हमें दूसरे देश जैसे कि अमेरिका के जीपीएस पर आश्रित रहना पड़ता था | जिसका परिणाम हमने मई 1999 में देखा था जब पाकिस्तानी सेनिक घुसपैठिये की तरह कश्मीर में घुस गए और कारगिल की कई पहाड़ियों पर उन्होंने कब्जा जमा लिया था| ऐसे हालत में हमारी सेना को घुसपैठियों का सही लोकेशन पता लगाने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था और जब हमारी सरकार ने अमेरिका से जीपीएस के द्वारा घुसपैठियों की जानकारी माँगी  तो अमेरिका ने भारत के उम्मीदों पर पानी फेरते हुए भारत की सहायता करने से मना कर दिया| इसके बावजूद भी हमारा देश युद्ध जीत गया और इस मुश्किल वक़्त में अमेरिका के दोहरे चरित्र को भी भारत ने देख लिया | इस अमेरिकी असहयोग से भारत ने सबक हासिल किया और अपनी नैविगेसन प्रणाली बनाने पर काम करना शुरू कर दिया | और आज उसी का परिणाम है कि भारत अपनी नैविगेशन प्रणाली बनाने वाले चंद देशों में शामिल है| जिसे भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organization - ISRO) ने बनाया है| नाविक एक तरह से RPS (Regional Navigation System) है| नाविक प्रणाली का पहला उपग्रह आई.आर.एन.एस.एस.-1 01 जुलाई, 2013 को प्रक्षेपित किया गया. और इस प्रणाली का आखिरी उपग्रह यानी आई.आर.एन.एस.एस.-1आई 12 अप्रैल, 2018 को पी.एस.एल.वी.-सी41 द्वारा स्थापित किया गया | आज यह नैविगेसन प्रणाली शुरू हो चुकी है |

GPS और  RPS में अंतर-

GPS (जीपीएस)- इसका पूरा नाम Global Positioning System है यह अमेरिकी अंतरिक्ष विज्ञान संस्था नासा द्वारा विकसित उपग्रह पर आधारित नैविगेसन प्रणाली है जिसका उपयोग हम आमतौर पर अपने मोबाइल में गूगल मेप के माध्यम से अपनी या किसी स्थान कि लोकेसन पता करने, अपनी लोकेशन से किसी दूसरी लोकेशन की दूरी पता करने के लिए करते हैं| इन कार्यों के अतिरिक्त जीपीएस से और भी कई तरह के कार्य किये जाते हैं, यह कम से कम 24 उपग्रहों से बना है। GPS किसी भी मौसम में 24 घंटे काम करता है |

RPS (आरपीएस)- इसका पूरा नाम रीजनल पोजिशनिंग सिस्टम(Regional Navigation System) है| भारत द्वारा बनाया गए नैविगेसन प्रणाली को हम जीपीएस कि श्रेणी में नहीं रख सकते क्योंकि यह सिर्फ भारत के ऊपर ही काम करेगा| इसके लिए ISRO ने 8 सैटेलाइट पृथ्वी की कक्षा में भारत के ऊपर स्थापित किये हैं जिसमे 07 सैटेलाइट नेविगेशन के लिए हैं और 01 सैटेलाइट मैसेजिंग के लिए है| इनका पूरा नाम है - इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) था जिसको बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सैटेलाइट सिस्टम का नाम भारत के मछुवारों को समर्पित करते हुए नाविक रखा है| नाविक यानि कि नैविगेशन इंडियन कॉन्स्टेलशन (NAVIC) इससे भारत में कहीं भी आपको जीपीएस से बेहतर नेवीगेशन मिलेगा साथ ही देश की सीमाओं से 1500 किमी बाहर तक का सटीक पोजिशनिंग पता चल पाएगा| जीपीएस पुरे वैश्विक स्तर पर कार्य करता है जबकि RPS का क्षेत्र सीमित होता है|  


भारत के अलावा इन देशों के पास है अपना खुद का नैविगेसन सिस्टम-

दुनिया में कुछ ही ऐसे देश हैं जिनके पास अपना खुद का नैविगेसन सिस्टम हैं| जिनमे अमेरिका के पास जीपीएस(24 सैटेलाइट) है, रूस के पास ग्लोनास(24 सैटेलाइट), भारत के पास नाविक(8 सैटेलाइट),यूरोप का गैलीलियो(26 सैटेलाइट), चीन का बीडाउ(30 सैटेलाइट) | इनमें से यूरोप के गैलीलियो और चीन के बीडाउ ने काम करना शुरू नहीं किया है इस तरह हम कह सकते हैं कि भारत इस नैविगेसन सिस्टम को प्राप्त करने वाला विश्व का तीसरा देश बन चूका है|

नाविक के उपग्रह- 

IRNSA यानी 'Indian Regional Navigation Satellite System जिसे हम नाविक के नाम से भी जानते है इसमें कुल 8 सैटेलाइट हैं जिनमें 7 नैविगेसन के लिए है जो कि हर समय दक्षिण एशिया में 1500 किमी के दायरे में नजर रखेंगे और 1 उपग्रह मेसेंजिंग के लिए है| इसमें 4 उपग्रह भूसमकालिक कक्षा में और 4 उपग्रह भू-स्थिर कक्षा में स्थापित किये गए हैं|  भूस्थिर कक्षा पृथ्वी से 35786 किमी ऊंचाई पर स्थित वह कक्षा है, जहां स्थित उपग्रह पृथ्वी से हमेशा एक ही स्थान पर दिखाई देता है| इसरो ने आईआरएनएसएस के उपग्रहों के कुल 9 प्रक्षेपण किये जिनमें से 1 प्रक्षेपण आईआरएनएसएस-1H (IRNSS-1H) 31 अगस्त 2017 असफल रहा|


जीपीएस और नाविक में बेहतर कौन ?

अमेरिकी जीपीएस के 24 उपग्रह पूरे विश्व के लिए अंतरिक्ष में फैले हुए हैं, और आईआरएनएसएस के केवल 7+1(मैसेजिंग ) उपग्रह भारत और उसके पड़ोसी देशों को कवर कर रहे हैं जीपीएस और नाविक में ज्यादा बेहतर नाविक है क्योंकि नाविक में एस और एल बैंड कि दोहरी आवृति है इसलिए यह जीपीएस से सटीक होगा, जीपीएस के मुकाबले शहरी इलाकों में नाविक की सटीकता छह गुना अधिक होगी। जबकी जीपीएस केवल एल बैंड पर आधारित है| इससे उसे कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है| जब कम आवृत्ति वाले संकेत वायुमंडल में यात्रा करते हैं, तो इसके वेग में बदलाव हो जाता है. इस कारण इस मॉडल को इसे समय-समय पर अपडेट करना पड़ता है| वहीं नाविक के मामले में दोहरी आवृत्ति (एस और एल बैंड) की देरी में अंतर को मापा जा सकता है और वास्तविक देरी का आकलन किया जा सकता है. इस प्रकार आवृत्ति त्रुटि खोजने के लिए नाविक किसी भी प्रकार से किसी भी मॉडल पर निर्भर नहीं है और ये जीपीएस से अधिक सटीक है|

जाने कैसे फोटो का बैकग्राउंड चेंज करें:-

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नाविक का उपयोग-


नाविक का उपयोग से हम अपने स्मार्ट फ़ोन और अपने वाहनों अपनी स्थिति और रास्तों कि जानकारी ज्यादा सटीकता के साथ पता कर सकेंगे |
युद्ध के समय इस सिस्टम से हथियारों को सटीकता से संचालित करना, दुश्मन देश की सेना का पता लगाने में | युद्ध के समय हम इसका उपयोग निर्बाध रूप से कर सकेंगे
NAVIC से हमें जमीन, वायु और जल तीनों पर रास्ता आसानी से पता चलेगा. साथ ही आपदा प्रबंधन में मदद मिलेगी |
नाविक से मैपिंग, भूगर्भीय डाटा कैप्चर करने, ड्राइवरों के लिए दृश्य और आवाज नेविगेशन के अलावा वाहन ट्रैकिंग और बेड़े प्रबंधन में भी मददगार साबित होगा|
इसका उपयोग किसी सैन्य मिशन पर, हथियारों की आवाजाही और मिसाइल छोड़ने या उसे नैविगेट करने के लिए किया जा सकेगा |

दोस्तों नाविक का इस्तेमाल पुराने स्मार्ट फोन पर नहीं किया जा सकेगा| इसका उपयोग नाविक नैविगेशन प्रणाली लगी चिप युक्त स्मार्ट फोन एवं अन्य डिवाइसों में ही किया जा सकेगा |

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