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RABINDRANATH TAGOR

RABINDRANATH TAGOR

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RABINDRANATH TAGORE
जन्म- 

रबींद्रनाथ टैगोर का जन्म देवेन्द्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के सन्तान के रूप में 7 मई, 1861 को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ था। बचपन में उन्‍हें प्‍यार से 'रबी' बुलाया जाता था | रबीन्द्रनाथ टैगोर, श्री देवेन्द्रनाथ टैगोर के सबसे छोटे पुत्र थे। रबींद्रनाथ टैगोर के भाई और बहन के नाम- द्विजेन्द्र नाथ, ज्योतिन्द्र नाथ, सत्येन्द्रनाथ, स्वर्णकुमारी था |


विवाह 

टैगोर का विवाह 9 दिसंबर1883 को म्रणालिनी देवी से हुआ | जिनसे रबीन्द्रनाथ टैगोर के पांच बच्चे हुए जिनके नाम इस प्रकार है- रेणुका टैगोर, शमिंद्रनाथ टैगोर, मीरा टैगोर, रथिंद्रनाथ टैगोर, माधुरिलता टैगोर इनमें से दो की मृत्यु बाल्यावस्था में हो गया था |

रबींद्रनाथ टैगोर की पहली कविता-


रबींद्रनाथ टैगोर ने महज आठ वर्ष की उम्र में ही ‘’भानुसिंहेर पदावली’ नामक अपनी पहली कविता लिखी खेलने कूदने के उम्र में रवीन्द्र कविता और लघु कहानी लिखने में व्यस्त रहते थे  रबींद्रनाथ टैगोर ने  1877 ई० में सोलह साल की उम्र में कहानी और नाटक लिखना प्रारंभ कर दिया था | आगे चलकर टैगोर एक महान कवि, उपन्यासकार, कहानीकार, राष्ट्रवादी, दार्शनिक व शिक्षाविद होने के साथ-साथ एक उत्कृष्ट संगीतकार और पेंटर भी साबित हुए | पिता के ब्रह्म-समाजी के होने के कारण वे भी ब्रह्म-समाजी थे। परन्तु अपनी रचनाओं व कर्म के द्वारा उन्होंने सनातन धर्म को भी आगे बढ़ाया। रबींद्रनाथ टैगोर उन साहित्य सर्जकों में हैं, जिन्हें काल की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। रचनाओं के परिमाण की दृष्टि से भी कम ही लेखक उनकी बराबरी कर सकते हैं उन्होंने एक हजार से भी अधिक कविताएँ लिखीं और दो हज़ार से भी अधिक गीतों की रचना की। रविन्द्र संगीत, बाँग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग है।  इनके अलावा उन्होंने बहुत-सारी कहानियाँ, उपन्यास, नाटक तथा धर्म, शिक्षा, दर्शन, राजनीति और साहित्यजैसे विविध विषयों से संबंधित निबंध लिखे।

शिक्षा –


समृद्ध परिवार में जन्म लेने के कारण  रबींद्रनाथ का बचपन बड़े आराम से बीता। पर विद्यालय का उनका अनुभव एक दुःस्वप्न के समान रहा जिसके कारण भविष्य में उन्होंने शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए अभूतपूर्व प्रयास किए। कुछ माह तक वे कलकत्ता में ओरिएण्टल सेमेनरी में पढ़े पर उन्हें यहाँ का वातावरण बिल्कुल पसंद नहीं आया। इसके उपरांत उनका प्रवेश नार्मल स्कूल में कराया गया। यहाँ का उनका अनुभव और कटु रहा। विद्यालयी जीवन के इन कटु अनुभवों को याद करते हुए उन्होंने बाद में लिखा जब मैं स्कूल भेजा गया तो, मैने महसूस किया कि मेरी अपनी दुनिया मेरे सामने से हटा दी गई है। उसकी जगह लकड़ी के बेंच तथा सीधी दीवारें मुझे अपनी अंधी आखों से घूर रही है। इसीलिए जीवन पर्यन्त गुरूदेव विद्यालय को बच्चों की प्रकृति, रूचि एवं आवश्यकता के अनुरूप बनाने के प्रयास में लगे रहे। इस प्रकार  रबींद्रनाथ को औपचारिक विद्यालयी शिक्षा नाममात्र की मिली। पर घर में ही उन्होंने संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी, संगीत, चित्रकला आदि की श्रेष्ठ शिक्षा निजी अध्यापकों से प्राप्त की।  | टैगोर जन्म से ही, बहुत ज्ञानी थे, इनके पिता प्रारंभ से ही, समाज के लिये समर्पित थे | इसलिये वह  | जी को भी, बैरिस्टर बनाना चाहते थे | जबकि, उनकी रूचि साहित्य में थी,  | जी के पिता ने 1878 में उनका लंदन के विश्वविद्यालय मे दाखिला कराया परन्तु, बैरिस्टर की पढ़ाई मे रूचि न होने के कारण 1880 मे वे बिना डिग्री लिये ही वापस आ गये |

रबींद्रनाथ टैगोर और आइंस्टाइन


आइंस्टाइन जैसे महान वैज्ञानिक, श्री  रबींद्रनाथ टैगोर को ‘‘रब्बी टैगोर’’ के नाम से पुकारते थे। हिब्रू भाषा में ‘‘रब्बी’’ का अर्थ होता है ‘‘मेरे गुरू’’। यहूदी धर्म गुरू को भी ‘‘रब्बी’’ कहा जाता है। आइंस्टाइन और गुरू रविन्द्रनाथ टैगोर के बीच हुए पत्र व्यवहार में ‘‘रब्बी टैगोर’’ का साक्ष्य मिलता है। श्री  रबींद्रनाथ ठाकुर से अल्बर्ट आइंस्टाइन की मुलाकात सम्भवतः तीन बार हुई। यह तीनों मुलाकात अलग-अलग समय में बर्लिन में हुई थी। सर्वप्रथम टैगोर जी ने ही गाँधी जी को महात्मा कहकर पुकारा था। और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस रविन्द्रनाथ टैगोर के कहने पर ही गाँधी जी से मिले थे। 1919 में हुए जलियाँवाला काँड की  रबींद्रनाथ ठाकुर ने निंदा करते हुए विरोध स्वरूप अपना सर का खिताब वाइसराय को लौटा दिया था। रबीन्द्रनाथ टैगोर का वैश्विक मंच पर मानवता का मूल्य निर्धारण करने वाला सार्वभौमिक विचार आज भी विचारणीय है |


रबींद्रनाथ टैगोर और नोबेल पुरस्कार -


रबींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिख गई गीतांजली नामक कविता के लिए इन्हें साल 1913 में नोबेल पुरस्कार मिला था। जिसके साथ ही वे भारतीय मूल के और एशिया के पहले ऐसे व्यक्ति बन गए थे जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। गीतांजली लोगों को इतनी पंसद आई कि उनकी इस कृति का कई भाषाओँ में अनुवाद किया गया टैगोर का नाम दुनिया के कोने कोने में फ़ैल गया और वे विश्व पटल पर स्थापित हो गए | वहीं साल 1915 में इन्हें अंग्रेजो द्वारा सरकी उपाधि भी दी गई थी। रबींद्रनाथ टैगोर दुनिया के संभवत: एकमात्र ऐसे कवि हैं, जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया। (1) भारत का राष्ट्र-गान जन गण मन जिसकी रचना 1911ई० में की (2) बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार यह एक लंबी कविता की शुरूआती 10 लाइनें हैं. इसे 1905 में बंगाल के पहले विभाजन के समय लिखा गया था | 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान इसे बतौर राष्ट्रगान स्वीकार कर लिया गया |

सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ : -

जीवित और मृत, क्षुधित पाषाण, नष्टनीड़, समाज का शिकार, भिखारिन, काबुलीवाला, पाषाणी, रामकन्हाई की मूर्खता, दीदी, माल्यदान, चोरी का धन, रासमणि का बेटा, विद्रोही, मुन्ने की वापसी, कंकाल।) आदि कहानी संग्रह।
काव्य कृतियाँ :-.

गीतांजलि, रवीन्द्रनाथ की कविताएँ, कालमृगया, मायार खेला।

नाट्य कृतियाँ:- 

राजा ओ रानी, विसर्जन, डाकघर, नटीरपूजा, रक्तकरबी (लाल कनेर), अचलायतन, शापमोचन, चिरकुमार सभा, चित्रांगदा, मुकुट, प्रायश्चित्त, शारदोत्सव,फाल्गुनी, चण्डालिका, श्यामा।

रवींद्रनाथ टैगोर ने लौटा दी थी 'नाइट हुड' की उपाधि-


रबींद्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजी हुकुमत का विरोध करते हुए अपनी 'सर' की उपाधि वापस लौटा दी थी | उन्होंने यह उपाधि विश्व के सबसे बड़े नरसंहारों में से एक जलियांवाला कांड (1919) की घोर निंदा करते हुए लौटाई थी | 13 अप्रैल 1919 में पंजाब के अमृतसर में हुए जलियाँवाला हत्याकाँड का रबींद्रनाथ ठाकुर ने निंदा करते हुए विरोध स्वरूप अपना ‘सर’ का खिताब वाइसराय को लौटा दिया था। उन्होंने कहा कि उनके लिए नाइटहुड का कोई मतलब नहीं था, जब अंग्रेजों ने अपने साथी भारतीयों को मनुष्यों के रूप में मानना भी जरूरी नहीं समझा।


रबींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थान-


शान्ति निकेतन-  1901 में रबींद्रनाथ टैगोर ने ब्रह्मचर्य आश्रम की स्थापना बोलपुर के पास की। बाद में इसका नाम उन्होंने शान्तिनिकेतन रखा।

विश्व भारती- इसकी स्थापना 1921ई० में की गई |

श्रीनिकेतन- श्रीनिकेतन कि स्थापना 1924ई० में की
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शिक्षा सत्र- शिक्षा सत्र की स्थापना 1924ई० में की |


रबींद्रनाथ टैगोर का निधन-


एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने, अपने प्रकाश से, सर्वत्र रोशनी फैलाई | भारत के बहुमूल्य रत्न मे से, एक हीरा जिसका तेज चहु दिशा मे फैला. जिससे भारतीय संस्कृति का अदभुत साहित्य, गीत, कथाये, उपन्यास , लेख प्राप्त हुए| ऐसे व्यक्ति का निधन 7 अगस्त 1941 को कोलकाता मे हुआ | टैगोर एक ऐसा व्यक्तित्व है जो, मर कर भी अमर है |

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