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SCIENCE IS PROUD OF THESE WOMEN SCIENTISTS

विज्ञान को नाज है इन महिला वैज्ञानिकों पर


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रसायन और भौतिक विज्ञानी-


SCIENCE IS PROUD OF THESE WOMEN SCIENTISTS


मैरी क्यूरी (mary curie)- 

मैरी स्क्लाडोवका क्यूरी,  (लघु नाम: मैरी क्यूरी) (जन्म 07 नवम्बर 1867- मृत्यु 04 जुलाई 1934) मैरी क्यूरी का जन्म पोलैंड के वारसा नगर में हुआ था। महिला होने के कारण तत्कालीन वारसॉ में उन्हें सीमित शिक्षा की ही अनुमति थी। इसलिए उन्हें छुप-छुपाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करनी पड़ी। बाद में बड़ी बहन की आर्थिक सहायता की बदौलत वह भौतिकी और गणित की पढ़ाई के लिए पेरिस आईं। 

मैरी क्यूरी एकमात्र ऐसी महिला है, जिन्हें दो बार नोबेल पुरुस्कार मिल चूका है| वह यूनिवर्सिटी आफ पेरिस की पहली महिला प्रोफ़ेसर रहीं| उन्होंने अपने पति पियरे क्यूरी और हेनरी बेक्यूरेल के साथ मिलकर रेडियोधर्मी किरणों और उसके पीछे छुपे सिद्धांत का पता लगाया| 

उन्होंने दुनिया को रेडियोधर्मिता शब्द दिया| वह सभी जांचों में अपनी टीम का नेतृत्व करती थीं| उन्होंने पोलोनियम और रेडियम कि खोज भी की| आइसोटोप के साथ ट्यूमर के इलाज का अध्ययन शुरू करने का विचार भी मैरी का ही था| उन्होंने पेरिस और वारसा में क्यूरी संस्थान की स्थापना की| 

दुर्भाग्य से मैरी रेडियोधर्मिता के खतरों से अनजान थीं| लम्बी अवधि तक विकिरणों के सम्पर्क के कारण 66 साल की उम्र में फ्रांस के सांटोरियम में  अप्लासटिक एनीमिया की वजह से 1934 में उनकी मौत हुई| उनके जर्नल और शोध पत्र भी इतने ज्यादा रेडियोधर्मी है कि उन्हें सीसे के बक्से में रखा जाता है| 

मैडम क्युरी आज भले ही इस संसार में नही हैं| किन्तु उनके द्वारा किये गए कार्य तथा समर्पण को विश्व कभी नही भूल सकता. आज भी समस्त विश्व में मैरी क्युरी श्रद्धा की पात्र हैं तथा उनको सम्मान से याद करना हम सबके लिए गौरव की बात है|


रसायन विज्ञानी-


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आइरीन
क्यूरी (Irène Curie)-

(जन्म 12 सितंबर- मृत्यु 17 मार्च 1956ई.)  आइरीन क्यूरी महान वैज्ञानिक मैरी क्यूरी की बेटी आइरीन ने अपने काम के बूते पर अपनी पहचान बनाई| उन्होंने अपने पति फ्रेडरिक जोल्यो  के साथ मिलकर कृत्रिम रेडियोधर्मिता की खोज की| 

उनकी अपने पति के साथ पहली मुलाकात उस समय हुई थी, जब वह अपनी डॉक्टरेट की डिग्री ले रही थीं| उस दौरान उनके पति ने रेडियोधर्मी रसायनों के अध्ययन के लिए प्रयोगशाला तकनीक सिखाने के लिए निवेदन किया था| 1926 ई. में आइरीन क्यूरी और जोल्यो दोनों का विवाह हो गया। 

अपनी माँ की तरह उन्हें भी अपने बेहतरीन कार्य के लिए नोबल पुरुस्कार मिला| आज भी उनका परिवार सबसे ज्यादा नोबल पुरुस्कार विजेता जीतने वाला परिवार है| उनके बच्चे हेलन और पियरे भी नामी वैज्ञानिक हैं| इसमें कोई शक नहीं कि इस परिवार में वैज्ञानिक बुद्धिमत्ता वाकई कमाल की है|


जीवाश्म वैज्ञानी


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मैरी एनिंग(
Mary Anning
)- 

(जन्म 21 मई 1799 – मृत्यु 9 मार्च 1847)  मैरी एनिंग समुद्र के किनारे पाए जाने वाले शंख और सीप पर किये गए शोध कार्यों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं| उन्होंने बताया कि ये जीवाश्म हैं | मैरी एनिंग ने पृथ्वीं के इतिहास के बारे में वैज्ञानिक समुदाय की समझ बढ़ाने में मदद की |

एनिंग ने डोरसेट में इंग्लिश चैनल के सहारे बनी चट्टानों पर जीवाश्म अध्ययन किया| उन्होंने पहली बार मीनसरीसृप कंकाल को दुनिया के सामने पेश किया| लिंगभेद के कारण उन्हें 19वीं सदी के वैज्ञानिक समुदाय का सदस्य ही स्वीकार नहीं किया गया| वर्ष 2010 में रॉयल सोसायटी ने उन्हें विज्ञान में सबसे प्रभावशाली ब्रिटिश महिलाओं की सूची में शामिल किया|


जानिए नोबल पुरुस्कार क्या है? और अब तक किन-किन लोगों को 

ये पुरुस्कार मिल चूका है|


भौतिक विज्ञानी-


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लीज माइटनर
(lise meitner)
- 

अगर लीज माइटनर और ओटो हैन ने बेहतरीन कार्य नहीं किया होता तो परमाणु उर्जा और हथियारों की दुनिया संभव नहीं होती| दोनों ने मिलकर विखंडन प्रक्रिया की खोज की, जिससे विशाल मात्र में उर्जा बाहर निकलती है| 

वैज्ञानिक खोज में मह्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए हैन को 1944 में रसायन का नोबल पुरुस्कार मिला, पर लीज माइटनर को नजरअंदाज किया गया| हालाँकि कई वैज्ञानिकों और पत्रकारों ने नोबल समिति के इस निर्णय का विरोध किया, पर नोबल समिति ने अभी तक उनके काम को मान्यता नहीं दी है| 

वह जर्मन में भौतिक कि प्रोफ़ेसर बनने वाली पहली महिला हैं| उन्हें बर्लिन अकेडमी ऑफ़ साइंसेज की और से लाइबनिट्स पदक से सम्मानित किया जा चूका है| रसायन तत्व 109 (माइटनेरियम) का नाम उनके नाम से ही लिया गया है|



खगोल भौतिक विज्ञानी-


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जोसेलिन बेल बरनेल(
jocelyn bell burnell
)- 

(जन्म 15 जुलाई, 1943 )- माइटनर ऐसी पहली या अंतिम महिला नहीं है, जिन्हें नोबल पुरुस्कार समिति ने नजरंदाज किया हो | बरनेल ने 1967 में रेडियो पल्सर की खोज की और विश्लेषण शुरू किया| 

जब उन्होंने इसके बारे में अपने शोध पर्वेक्षक एंटनी हेविश को बताया तो वह उलझन में थे, और कहा कि उनकी खोज केवल मानव निर्मित हस्तक्षेप का परिणाम है| आखिर में हेविश ने इस घटना को पेपर में प्रकाशित करवाया| बरनेल इसके पांच लेखकों की सूची में दुसरे स्थान पर थीं | 

नोबल पुरुस्कार हेविश और मार्टिन रेयल को दिया गया| हालाँकि वैज्ञानिकों ने इस निर्णय का विरोध किया| बरनेल ने टेलिस्कोप के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई|



प्रीमैटोलोजिस्ट-


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जेन गुडाल(
Jane Goodall
)- 

अगर किसी महिला वैज्ञानिक को अपने समय में सेलिब्रिटी का दर्जा मिला है तो वह हैं- जेन गुडाल| 

वह चिम्पांजी का अध्ययन करने के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हुईं| यह ख्याति उन्हें रातों-रात नहीं मिली थी| इसके लिए तंजानियां में जंगली चिम्पंजियों के सामाजिक और पारिवारिक संबंधों का 55 वर्ष तक अध्ययन किया| 

गुडाल बचपन से ही चिम्पंजियों को लेकर काफी उत्सुक रहीं| उन्होंने केनिया के प्रसिद्ध जीवाश्म विज्ञानी लुईस लीके के साथ काम किया| लीके ने गुडाल को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी भेजा | 

वह कैम्ब्रिज के इतिहास में आठवीं ऐसी स्टूडेंट थीं, जिसने पहले बैचलर्स डिग्री प्राप्त किये बिना ही पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर ली|

 


कोशिका आनुवांशिक विज्ञानी-


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बारबरा मैक्क्लिंटाक (
Barbara-McClintock
)- 

बारबरा मैक्क्लिंटाक (जन्म 16 जून, मृत्यु 1902 - 2 सितंबर, 1992) एक अमेरिकी वैज्ञानिक और साइटोजेनेटिकिस्ट थी उन्हीं की बदौलत ही पूरी दुनिया जानती है कि क्रोमोसोम किस तरह से काम करते हैं| 

उन्होंने आनुवंशिकी पर फोकस किया और मक्के के लिए पहला आनुवांशिक नक्शा तैयार किया| इससे पता लगा कि किस तरह से क्रोमोसोम शारीरिक लक्षणों को प्रभावित करता है | उन्होंने बताया कि जीन्स के कारण शारीरिक विशेषताओं में बदलाव आ सकता है| 

उनका शोध कार्य अपने समय से बहुत आगे का था| यही कारण है कि उनके कार्य की काफी आलोचाना की गई| आखिर उन्होंने 1953 में अपना कार्य प्रकाशित करना बंद कर दिया| 

सौभाग्य से इसकी पुनः खोज हुई और 1983 में आनुवांशिक ट्रांसपोजिशन की खोज के लिए उन्हें सम्मानित किया गया| वह उस श्रेणी में एक नोबेल पुरस्कार पाने वाली एकमात्र महिला हैं।



रसायन विज्ञानी-


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रोज़लिन फ़्रैंकलिन(
Rosalind Franklin)-
 

(जन्म 25 जुलाई 1920 – मृत्यु 16 अप्रैल 1958) डीएनए (डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड), आरएनए (रैबोनुक्लियक एसिड), वायरस, कोयले की आणविक संरचना को समझने के लिए योगदान दिया है|

1951 में किंग्स कॉलेज में काम शुरू करने के बाद, रोज़लिन फ्रैंकलिन ने डीएनए की डबल हेलिक्स वाली संरचना की खोज में अहम भूमिका अदा की| फ़्रैंकलिन अपने समय से बहुत आगे थीं, वह बहुत घूमती थीं, एक बार तो उन्होंने पीठ पर सामान लादकर, फ्रांस की ऐल्प्स पर्वतमाला की यात्रा की |


दोस्तों ऐसे और भी कई महिला वैज्ञानिकों के नाम है जिन्होंने अपने अथक प्रयासों से और पुरे मन से विज्ञान और मानवता की सेवा की है| हम ऐसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सभी महिला वैज्ञानिकों के ऋणी और आभारी रहेंगे |

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