जोगी जी रुको एक बात सुनो घर छोड़ के वन में जाना क्या
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दोस्तों आज मैं जिस शायर कि शायरी आपकि खिदमत में पेश कर रहा हूँ उनका नाम है अब्दुस्सलाम कौसर | तो आइये सब से पहले हम इनके बारे में थोड़ा जान लें
अपने समकालीन शायरों में अलग पहचान रखने वाले जनाब अब्दुस्सलाम ‘कौसर’ का जन्म 09 जनवरी 1948 को रायपुर जिले के ग्राम खरोरा में हुआ। उनके पिता का नाम श्री सिद्दीक अहमद था।
‘कौसर’ के जन्म के बाद उनका परिवार संस्कारधानी राजनांदगांव (छत्तीसगढ़) में आकर बस गया। ‘कौसर’ ने बी.एस-सी. एवं बी.टी.सी. तथा अदीबे-कामिल तक शिक्षा प्राप्त की है। सिर्फ़ पांचवीं तक उर्दू पढ़ने के पश्चात ‘कौसर’ ने उर्दू साहित्य का गहन अध्ययन किया।
उर्दू शेरो-सुख़न और अदब का ‘कौसर’ ने इतना अध्ययन किया कि उन्हें हज़ारों शेर ज़ुबानी याद हैं। ‘कौसर’ को ग़ज़लों के अलावा नज़्म लिखने में भी महारत हासिल है।
सहाफ़त (पत्रकारिता) के क्षेत्र में नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘शमा’ विश्वस्तर पर उर्दू साहित्य की सर्वश्रेष्ठ पत्रिका मान ली गई थी। ‘शमा’ का क्रेज ऐसा था कि इसमें छपने की आस में कई लेखकों और शायरों की उम्र गुज़र जाती थी।
ऐसी उत्कृष्ठ गौरवशाली पत्रिका में साठ-साठ, सत्तर-सत्तर मिसरों (पक्तियों) पर लिखी गयी नौ-नौ, दस-दस बंद की नज़्में क्रमश: लाटरी का तूफ़ान, मेरे हिन्दोस्तां, हवाले का शिकंजा, नया साल, कौन रहबर है तथा कंप्यूटर प्रकाशित होने से ‘कौसर’ राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शायरों की पंक्ति में आ गये।
जोगी जी रुको एक बात सुनो घर छोड़ के वन में जाना क्या
जोगी जी रुको एक बात सुनो
घर छोड़ के वन में जाना क्या!
हर साँस में उसका ज़िक्र है जब
फिर बस्ती क्या, वीराना क्या!!
सरमद ने पड़ा क्यूँ आधा कलमा
मीरा क्यूँ जोगन बन बैठी!
क्यूँ गौतम ने घर छोड़ दिया
ये राज़ किसी ने जाना क्या!!
दुनिया की खातिर दुःख झेले
घर से भी गए, सूली पे चढ़े!
वो लोग तो सच्चे थे लेकिन
जग ने उनको पहचाना क्या!!
क्या ईद दिवाली की खुशियां
क्या होली क्रिसमस बैसाखी!
मुफलिस की जेब तो खाली है
त्यौहार का आना-जाना क्या!!
"सुकरात" तो है खामोश मगर
ये ज़हर का प्याला कहता है!
इंसाफ जहां दम तोड़ चुका,
वहा जीना क्या? मर जाना क्या!!
माना तुम अच्छे रहबर हो
फिर देश में क्यूँ बदहाली है?
"कौसर" इस राज़ से बाकिफ है
समझे थे उसे दीवाना क्या?
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JOGI JI RUKO EK BAAT SUNO GHAR CHHOD KE WAN ME JANA KYA
Jogi ji ruko, ek baat suno
Ghar chhod ke wan me jana kya
Har saans me uska jikr hai jab
Fir basti kya, veerana kya
Sarmad ne padha kyon aadha kalma
Meera kyon jogan ban baithi
Kyon goutam ne ghar chhod diya
Ye raaz kisi ne jana kya
Duniya ki khatir dukh jhele
Ghar se bhi gaye, suli pe chadhe
Wo log to sachche the lekin
Jag ne unko pahchana kya
Kya eid diwali ki khushiyan
Kya holi Christmas baisakhi
Muflis ki zeb to khali hai
Tyohar ka aana jana kya
Sukrat to hai khamosh magar
Ye zahar ka pyala kahta hai
Insaf jahan dam tod chuka
Wahan jeena kya mar jana kya
Mana tum achchhe rahbar ho
Fir desh me kyon badhali hai
Kousar is raj se wakif hai
Fir desh me kyon badhali hai
Kousar is raj se wakif hai
Samjhe the use deewana kya
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