गुरु पर दोहे
गुरु अवगुण को मेटता, मिटें सभी भ्रमजाल ।।
गीली मिट्टी अनगढ़ी, हमको गुरुवर जान ।
ज्ञान प्रकाशित कीजिये, आप समर्थ बलवान ।।
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।।
गुरु बिन ज्ञान न होत है, गुरु बिन दिशा अजान ।
गुरु बिन इंद्रिय न सधें, गुरु बिन बढ़े न शान ।।
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गुरु ग्रंथ का सार है, गुरु है प्रभु का नाम ।
गुरु अध्यात्म की ज्योति, गुरु है चारों धाम ।।
शिष्य वही जो सीख ले, गुरु का ज्ञान अगाध ।
भक्तिभाव मन में रखे, चलता चले अबाध ।।
गुरु अमृत है जगत में, बाकी सब विषबेल ।
सतगुरु संत अनंत हैं, प्रभु से कर दें मेल ।।
अंधकार से खींचकर, मन में भरे प्रकाश ।
ज्यों मैली चुनरी धुले, सोहत तन के पास ।।
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गुरु की कृपा हो शिष्य पर, पूरन हों सब काम ।
गुरु की सेवा करत ही, मिले ब्रह्म का धाम ।।
गुरु अनंत तक जानिए, गुरु की ओर न छोर ।
गुरु प्रकाश का पुंज है, निशा बाद का भोर ।।
गुरु तेरे उपकार का, कैसे चुकाऊं मैं मोल ।
लाख कीमती धन भला, गुरु हैं मेरे अनमोल ।।
गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है, गढ़ि – गढ़ि काढ़ै खोट ।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट ।।
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गुरु को सिर रखिये, चलिए आज्ञा माहिं ।
कहे कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहिं ।।
गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजिये दान ।
बहुतक भोंदू बहि गए, सखि जीव अभिमान ।।
सब धरती कागज करूँ, लेखनी सब बनराय ।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा ना जाए ।।
गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काके लागूं पाय ।
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय ।।
1 टिप्पणियाँ
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागू पाय ।
जवाब देंहटाएंबलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए ।।
🙏🙏धन्यवाद 🙏🙏
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