कोई आरजू नहीं है कोई मुद्दआ नहीं है
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दोस्तों आज मैं आपके लिए ले कर आया हूँ उर्दू के मशहूर शायर शकील बदायूंनी साहब के अशआर | उससे पहले मैं आप लोगों को शकील साहब के बारे में थोड़ी जानकारी दे देता हूँ | शकील बदायूंनी का जन्म 3 अगस्त 1916ई० में उत्तरप्रदेश के बदायूं में हुआ था | इनका नाम शकील अहमद था |'शकील' को बचपन से ही शायरी का शौक था | उन्हें जिगर मुरादाबादी का शागिर्द माना जाता है | मशहूर ग़ज़लगो शायरों में शुमार शकील 'बदायूंनी' ने फिल्मों में भी खूब और उम्दा गीत लिखे | लेकिन करीब 20 साल तक फिल्मों में हजारों गीत लिखने के बावजूद वे ठेठ उर्दू ग़ज़ल की परम्परा से खुद को अलग नहीं कर पाए | 20 अप्रैल 1970 को 'सनम-ओ-हरम' ,'रानाइयां', 'रंगीनियां' और 'चमनिस्तान' जैसे चर्चित ग़ज़ल संग्रह के रचियता शकील बदायूंनी का इन्तेकाल हो गया |
शकील बदायूंनी
कोई आरजू नहीं है, कोई मुद्दआ नहीं है,
तेरा ग़म रहे सलामत, मेरे दिल में क्या नहीं है |
कहाँ जामे-ग़म की तल्खी, कहाँ ज़िन्दगी का रोना,
मुझे वो दवा मिली है, जो निरी दवा नहीं है |
तू बचाए लाख दामन, मेरा फिर भी है ये दावा,
तेरे दिल में मैं ही मैं हूँ, कोई दूसरा नहीं है |
तुम्हें कह दिया सीतमगर, ये कुसूर था जबां का,
मुझे तुम मुआफ कर दो, मेरा दिल बुरा नहीं है |
मुझे दोस्त कहने वाले, जरा दोस्ती निभा ले,
ये मताल्बा है हक़ का, कोई इल्तिजा नहीं है |
ये उदास-उदास चेहरे, ये हसीं-हसीं तबस्सुम
तेरी अंजुमन में शायद , कोई आईना नहीं है |
मेरी आँख ने तुझे भी, बाखुदा 'शकील' पाया,
मैं समझ रहा था मुझसा, कोई दूसरा नहीं है |
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